21वीं सदी का भारत: चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ

  • दिलावर सिंह

Abstract

सुभाष चन्द्र बोस कहते है कि ‘‘जीवन में अगर संघर्ष न रहे, किसी भी भय का सामना न करना पड़े, तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है।’’ 14 अगस्त 1947 को भारत के दुर्भाग्य का अंत तो था ही परन्तु ब्रिटिशांे द्वारा किए गए औपनिवेशिक शोषण ने भारत को इसी प्रकार के अनेक संघर्षाे से जुझने को छोड़ गए। भारत को आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक दृष्टि से कमजोर कर जाति, धर्म, भाषा, संप्रदाय, एवं क्षेत्रवादी भावनाएँ भड़काकर विघटनकारी प्रकृतियों को प्रोत्साहित किया। भारत के सामने आयी चुनौतियों को दो भागों में बांटा है - आन्तरिक चुनौतियाँ एवं बाह्य चुनौतियाँ।
How to Cite
दिलावर सिंह. (1). 21वीं सदी का भारत: चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ. ACCENT JOURNAL OF ECONOMICS ECOLOGY & ENGINEERING ISSN: 2456-1037 IF:8.20, ELJIF: 6.194(10/2018), Peer Reviewed and Refereed Journal, UGC APPROVED NO. 48767, 6(2), 01-06. Retrieved from https://ajeee.co.in/index.php/ajeee/article/view/1607
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