मूकज्जी का चारित्रिक विष्लेषण सामाजिक एवं धार्मिक संदर्भ में

  • डाॅ. कामना शर्मा

Abstract

साहित्यकार के. शिवराम कारन्त की ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कृति मुकाज्जिय कनसुगलू कन्नड़ भाषा में लिखा गया उपन्यास है। जिसका हिंदी में अनुवाद मूकज्जी शीर्षक से भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है। ‘‘मूकज्जी’’ का प्रथम संस्करण सन् 1977 में आया था। ‘‘मूकज्जी’’ अर्थ है वह दादी जो मूक है। ‘‘मूकज्जी’’ की उम्र लगभग 80 वर्ष है। मूकज्जी का जन्म उस समय हुआ था जब बाल विवाह प्रथा थी। स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था। विधवा होने पर कठोर और अमानवीय जीवन का अनुपालन करना होता था। मूकज्जी बाल विधवा है । उसने भी यह सब सहा है जो एक बाल विधवा को सहना होता है। विधवा मूकज्जी को अतीन्द्रिय क्षमता प्राप्त हैै। वह व्यक्ति को देख कर उसका आचरण, भूत-भविष्य सब जान जाती है। इससे भी बढ़कर वह किसी वस्तु को छूकर या किसी स्थान पर बैठकर उससे संबंधित व्यक्तियों, तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति और सामाजिक घटनाओं को भी अनुभूत कर लेती है।
How to Cite
डाॅ. कामना शर्मा. (1). मूकज्जी का चारित्रिक विष्लेषण सामाजिक एवं धार्मिक संदर्भ में. ACCENT JOURNAL OF ECONOMICS ECOLOGY & ENGINEERING ISSN: 2456-1037 IF:8.20, ELJIF: 6.194(10/2018), Peer Reviewed and Refereed Journal, UGC APPROVED NO. 48767, 5(6). Retrieved from http://ajeee.co.in/index.php/ajeee/article/view/1721
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