‘‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’’

  • डाॅ. अकिला नागोरी

Abstract

प्रस्तावना:- स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। भारतीय संविधान संधात्मक होते हुए भी सारे देश के लिए न्याय-प्रशासन की एक ही व्यवस्था करता है जिसके शिखर पर उच्चतम न्यायालय वर्धमान है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय देश के सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी है। संधात्मक संविधान में स्त्रतंत्र न्यायपालिका का मुख्य कार्य केन्द्र तथा राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करना होता है, इसलिए उच्चतम न्यायालय को संविधान का संरक्षक कहा गया है। देश के विधानमंडलों द्वारा बनाई गई विधियों को सुप्रीम कोट असंवैधानिक घोषित कर सकता है, यदि ये विधियाँ संविधान के किसी उपलबंध की असंगति में है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया गया संविधान का निर्वचन अंतिम होता है। स्वतंत्र न्यायापालिका का मुख्य कार्य नागरिकों के मूलाधिकारों की रक्षा करना होता है। इस प्रकार सुप्रीम कोट न केवल संविधान का बल्कि मूल अधिकारों का संरक्षक व जागरूक प्रहरी है। स्वतंत्र न्यायपालिका प्रजातंत्र की आधारशिला है इसलिए संविधान में न्यायपालिका को बिल्कुल स्वतंत्र रखा गया है। जिससे यह निष्पक्षता एवं निर्भयतापूर्ण न्याय दे सके। इसलिए न्यायपालिका को केन्द्र व राज्यो,ं दोनों में से किसी के अधीन नहीं रखा गया है।
How to Cite
डाॅ. अकिला नागोरी. (1). ‘‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’’. ACCENT JOURNAL OF ECONOMICS ECOLOGY & ENGINEERING ISSN: 2456-1037 IF:8.20, ELJIF: 6.194(10/2018), Peer Reviewed and Refereed Journal, UGC APPROVED NO. 48767, 6(01), 247-250. Retrieved from http://ajeee.co.in/index.php/ajeee/article/view/1713